अगर आप प्रतिदिन आधा घंटा पूजा में अपना समय व्यतीत करते हैं तो आपको दिल का दौरा पड़ने की आशंका पचास फीसदी कम हो जाती है। अगर आप ईसाई हैं और नियमित रूप से चर्च जाकर ‘संडे प्रेयर’ में भाग लेते हैं तो आप में तनाव की संभावना साठ से अस्सी प्रतिशत तक कम हो जाती है। मानसिक ताजगी के लिए आध्यात्म से बेहतर कोई और दवा ही नहीं है।
यह बात सुनने में जरूर अटपटी सी लगती है पर है सौ फीसदी सत्य। यह भविष्यवाणी या निष्कर्ष किसी संत महात्मा के नहीं हैं बल्कि अमेरिका का वैज्ञानिकों द्वारा किये गये एक शोध के नतीजे हैं। तो देर किस बात की हैं। आज और अभी से ही आप अपना कुछ समय भक्ति संगीत-पूजा पाठ में व्यतीत करिये और मासिक कष्ट से दूर होइये। लाइफस्टाइल के मामले में अपने शोध निष्कर्षों के लिए विख्यात अमेरिका का नेशनल इंस्टीच्यूट आफ हेल्थकेयर एक-दो नहीं बल्कि आध्यात्म को लेकर साढ़े तीन दर्जन शोध करके अपने इन निर्णायक निष्कर्षों पर पहुंचा है। इन शोधों में पचास हजार से ज्यादा लोगों की जीवनचर्या का गहन अध्ययन किया गया जबकि इससे ज्यादा लगभग 75 से 80 हजार लोगों से विस्तृत साक्षात्कार किये गये। ये सभी लोग तमाम देशों, समाजों और मिश्रित जाति परम्पराओं के थे।
इन विस्तृत शोध अध्ययनों के विश्लेषण में भी बहुस्तरीय पद्धति का इस्तेमाल किया गया। जिन्दगी के विभिन्न पहलुओं के विशेषज्ञों की भागीदारी से ही किसी साझे निष्कर्ष पर पहुंचा गया क्योंकि ज्यादातर शोधों में दिक्कत यह होती है कि उनके निष्कर्ष एकांगी हो जाते हैं। लेकिन इस शोध श्रृंखला में विभिन्न क्षेत्र के विशेषज्ञों को एक साथ जोड़ा गया। इस बहुस्तरीय शोध श्रृंखला की अगुवाई अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक माइकेल मैक्लांग ने की। शोध परिणामों में यह भी पाया गया है कि धार्मिक कार्यों में अधिक भागीदारी आपको मोटापे से भी बचाती है।
डॉ. मैकलांग के अनुसार धार्मिक गतिविधियों से संबद्धता का मोटापे पर प्रभाव हमें बताता है कि ‘क्यों धार्मिक कार्यों से संबद्धता जिंदगी पर अशामयिक मौत का खतरा कम कर देती है।’ चूंकि ज्यादातर धर्मों में शराब का अत्यधिक इस्तेमाल, मांसाहार, नशीले पदार्थों के सेवन और यहां तक कि धूम्रपान पर भी रोक है, इससे साफ स्पष्ट हो जाता है कि धार्मिक प्रवृत्ति के लोग लंबी और स्वस्थ जिंदगी कैसे जीते हैं वशर्ते वे नकली धार्मिक न हो।