वृन्दावन। छीपी गली स्थित प्रियावल्लभ कुंज में श्रीहितपरमानंद शोध संस्थान के द्वारा ठाकुर प्रियावल्लभ लाल एवं ठाकुर विजयराधावल्लभ लाल का 207 वां त्रिदिवसीय पाटोत्सव विभिन्न धार्मिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ आज से प्रारंभ हो गया है। महोत्सव का शुभारंभ अखिल भारतीय निर्मोही अखाड़ा बड़ा रासमण्डल के महंत लाड़िली शरण जी महाराण एवं सिंहपौर हनुमान मंदिर के महन्त सुन्दरदास महाराज ने ध्वजारोहण एवं हित हरिवंश मंगल गान करके किया। साथ ही अखण्ड हरिनाम संकीर्तन, श्रीहरिवंश सहस्त्र नाम, सेवक वाणी, श्रीहित चतुरासी, हितवाणी, राधासुधा निधि आदि के पाठ भी प्रारम्भ हो गए। रस भारती संस्थान के अध्यक्ष डॉ. श्याम बिहारी खण्डेलवाल एवं डॉ. जयेश खण्डेलवाल के द्वारा मंगल बधाई समाज गायन किया गया।
महन्त लाड़िली शरण महाराज ने कहा कि प्राचीन कुंजों और मन्दिरों में रसिक सन्तों के भजन की ऊर्जा आज भी विद्यमान है।
महन्त सुंदर दास महाराज ने कहा की कुंजों व मन्दिरों की शोभा उत्सव मनाने से ही है। वैष्णव समाज में पाटोत्सव मनाने का विशेष महत्व है। यह कार्य श्री प्रियावल्लभ कुंज के द्वारा पूरी श्रद्धा व समर्पण के साथ किया जाता है।
संस्थान के अध्यक्ष आचार्य विष्णुमोहन नागार्च ने कहा कि उनके पूर्वज श्रीहितपरमानंद दास जी महाराज 18वीं शताब्दी के रससिद्ध एवं प्रख्यात वाणीकार थे। उनके सेव्य ठाकुर यहां आज भी विराजित हैं।
श्रीहितपरमानंद शोध संस्थान के समन्वयक व वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने कहा कि ठाकुर प्रियावल्लभ कुंज का इतिहास 207 वर्ष पुराना है। इस कुंज ने राधावल्लभ सम्प्रदाय का व्यापक प्रचार-प्रसार किया है। श्रीहित परमानंद दास महाराज ने बुंदेलखंड की महारानी बख्त कुँवरि को दीक्षा देने के बाद प्रिया सखी नाम दिया था जिनके भी सेव्य ठाकुर इस कुंज में आज भी विराजित हैं। श्रीहितपरमानंद दास महाराज ने अपनी वाणियों के द्वारा रस भक्ति धारा को अत्यंत समृद्ध व उन्नत किया है।
इस महोत्सव में महन्त रामप्रकाश भारद्वाज (मधुर जी) महन्त मधुमंगल शरण शुक्ल चंद्रमोहन नागार्च आचार्य जुगलकिशोर शर्मा आचार्य करुणा शंकर त्रिवेदी हितवल्लभ नागार्च, रासाचार्य स्वामी अमीचंद शर्मा विनोद शर्मा बलराम नागार्च, तरुण मिश्रा भरत किशोर शर्मा विनोद शंकर त्रिवेदी ब्रजमोहन दास महाराज रोहित दुबे सरोज गुप्ता रमा गुप्ता गीता गुप्ता मुंशी स्वामी रासबिहारी मिश्रा हितानंद नागार्च रसानंद नागार्च प्रेवमानंद नागार्च, कीर्ति नागार्च, राधाकांत शर्मा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये। संचालन डॉ.गोपाल चतुर्वेदी ने किया।