लोकसभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं। इनको अप्रत्याशित कहे या देश के आम नागरिक का आक्रोश कहें या केंद्र की सरकार की विफलता। अब समय आ गया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह को आत्म चिंतन करने का। लोकसभा चुनाव के परिणाम बताते हैं कि उड़ीसा और मध्य प्रदेश जैसे राज्य में यदि भाजपा की भरपूर सीट नहीं आती तो स्थिति 200 के आसपास ठहर जाती। पूरे देश में यूपी ऐसा राज्य है जिसे बीजेपी का गढ़ कहा जाता है। यूपी में राज्य स्तर की पार्टी कई जाने वाली पार्टी सपा ने अपने जोरदार प्रदर्शन से भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी को पीछे धकेल कर भाजपा हाई कमान के होश उड़ा दिए हैं। धर्म की राजनीति करने वाली भारतीय जनता पार्टी अयोध्या और प्रयागराज जैसी महत्वपूर्ण सीट हारकर आज सोचने को मजबूर है कि गलती कहा हुई। अपने आप पर अत्यधिक विश्वास के कारण अपनी लुटिया डुबो लेना बीजेपी के लिए कहा जाए तो कोई गलत नहीं होगा। पार्टी के वास्तविक कार्यकर्ता को नहीं पूछना भारी पार्टी के नेताओं को महत्व देना वर्तमान स्थिति के लिए जिम्मेदार है। आज के समय में यदि भाजपा के कार्यकर्ता से बात की जाए तो वह स्पष्ट रूप से बता देगा की शासन प्रशासन में उसकी कोई नहीं सुनता है। यहां तक कि बात की जाए तो बीजेपी के एमपी एमएलए भी अधिकारियों को फोन मिलाते रहते हैं पर कोई नहीं उठाना चाहता। भाजपा हाईकमान को विश्वास था कि जनता उनके साथ है तो कार्यकर्ता की उनका कोई आवश्यकता नहीं है। इसी कारण यूपी सहित अधिकांश राज्यों में भाजपा कार्यकर्ता जिस तरह चुनाव में अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते थे वह उन्होंने नहीं किया। एक और भाजपा का वोट बैंक बहुसंख्यक समाज कम संख्या में वोट डालने के लिए निकला तो वहीं अल्पसंख्यक दलित पिछड़े वर्ग ने पूरी ताकत के साथ अपनी पसंदीदा प्रत्याशी को वोट दिया।
वाराणसी लोक सभा सीट से प्रधानमंत्री जहां कई कई लाख वोटो से दोनों बार जीते हैं परंतु इस बार उनको मात्र डेढ़ लाख के आसपास की जीत नसीब हुई। हालांकि आज भी भारतीय जनता पार्टी भारतवासियों की प्रथम पसंद है । कहते हैं कि भाजपा हाईकमान ने ओवर कॉन्फिडेंस के चलते यह जानने की कोशिश कभी नहीं कि आम जनता खासकर मध्यम वर्ग को उनसे क्या उम्मीद है और वह किस बात से परेशान है क्या चाहते हैं उसमें बीजेपी उनकी क्या मदद कर सकती है उसे पर कोई विचार नहीं किया गया। हमारे देश में यह तो सत्य है कि बड़े लोग गर्मियों या ठंड लाइन में वोट डालने की स्थिति में नहीं पढ़ना चाहते।
भाजपा की हार में फर्जी सर्वे करने वालों का भी बहुत बड़ा रोल है जिन्होंने एसी कमरों में बैठकर भाजपा हाई कमान को बता दिया कि वह 400 सीट जीतने की स्थिति में है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी लंबी दूरी ने भाजपा को इस स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है यह कहना भी कोई गलत नहीं होगा। पूर्व समय में हुए लोकसभा चुनावो में भारतीय जनता पार्टी के नेता कार्यकर्ताओं के अलावा आरएसएस के लोग घर-घर, बस्ती बस्ती जाकर लोगों को उनके और देश के भले के बारे में समझते थे इस बार ऐसा नहीं हुआ।
अब समय आ गया है कि भाजपा हाई कमान को आर एस एस के साथ बैठकर सभी बातों पर आत्म चिंतन करना होगा और देश के मध्यम वर्गीय समाज के हित के बारे में योजना बनानी पड़ेगी। चुनाव परिणाम बताते है कि 70 साल में लोगों ने कांग्रेस को जमीन से उखाड़ फेंका था परंतु बीजेपी की यह स्थिति 10 साल में ही आ गई क्यों आ गई यह बहुत ही चिंता का विषय है।