सांझी पेपर कटिंग की कृति मथुरा के स्व. चैनसुख दास वर्मा के हाथों की बनाई थी। करीब तीन दशक से मंदिरों तक सीमित रह गई इस कला को जीवंत करने के लिए द ब्रज फाउंडेशन ने करीब दस साल पहले प्राचीन ब्रह्मकुंड पर सांझी मेला का आयोजन किया। वृंदावन में सांझीकारों में राधारमण मंदिर और राधावल्लभ मंदिर के सेवायतों के अलावा भट्ट घराना जुड़ा है। पुराणों में उल्लेख है कि द्वापर में शाम के समय जब भगवान श्रीकृष्ण गोचारण करके आते थे, तो ब्रज गोपियां उनके स्वागत के लिए फूलों की चित्रकला (सांझी) सजाकर स्वागत करती थी। तभी से ब्रज में सांझी कला की शुरुआत पड़ी।
क्या होता है GI Tag
सबसे पहले हम यह जान लेते हैं कि आखिर GI Tag क्या होता है, तो आपको बता दें कि यह भौगोलिक संकेत है, जिसका प्रयोग उन उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनकी एक विशेष भौगोलिक उत्पत्ति होती है। साथ ही उनके गुणों की प्रतिष्ठा भी होती है, जो कि उसके मूल कारण की वजह से है। वर्तमान में भारत में 400 से अधिक GI Tag वाली वस्तुएं मौजूद हैं।
कौन देता है GI Tag
भारत में साल 1999 में जीआई टैग को लेकर कानून बनाया गया था, जिसके बाद साल 2003 में इसे लेकर प्रक्रिया शुरू हुई और साल 2004 में पहला जीआई टैग दिया गया। भारत में यह टैग चेन्नई स्थित इंडियन ज्योग्राफिकल रजिस्ट्री द्वार दिया जाता है। जिस वस्तु को जीआई टैग मिलता है, उसे प्रत्येक 10 वर्ष में इसका नवीनीकरण कराना होता है।