-सनत जैन-
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 1 जुलाई से नए आपराधिक कानून लागू करने की अधिसूचना जारी कर दी गई है। भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के नए प्रावधान 1 जुलाई से लागू हो जाएंगे। यह तीनों कानून अंग्रेजों के बनाए गए कानून का स्थान लेंगे। भारत सरकार ने अंग्रेजों के बनाये हुए कानून के स्थान पर जो नए कानून बनाए हैं। उसको वर्तमान परिपेक्षय में कानून की कुछ धाराएं खत्म कर दी गई हैं। कुछ नई धाराएं जोड़ी गई हैं। अंग्रेजों की बनाए गए कानून और भारतीय कानून के यदि अंतर को हम समझना चाहें, तो अंग्रेजों के बनाये हुए कानून में नैतिकता थी, जिम्मेदारी थी। अदालत के अधिकार असीमित थे। जांच एजेंसियों और सरकार के ऊपर अदालतों का नियंत्रण होता था। जो कानून लागू होंगे, उसमें सरकार अंग्रेजों से ज्यादा निरंकुश हो सकती है। अंग्रेजों के बनाए गए राजद्रोह कानून को खत्म कर दिया गया है। उसके स्थान पर अब देशद्रोह को शामिल किया गया है। लोकतांत्रिक देश में सरकार की आलोचना कोई भी नागरिक कर सकता है। भारत सरकार ने जो नया कानून बनाया है। उसमें देश की सुरक्षा, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की आशंका होने पर भी सरकार देशद्रोह के तहत कार्रवाई कर सकेगी। केवल आशंका होने पर किसी भी नागरिक को जेल भेजा जा सकेगा। सरकार उसे लंबे समय तक जेल में बंद रख सकेगी। आतंकवादी गतिविधियों के लिए भी कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें न्यायालय की जमानत देने की शक्ति को सीमित किया गया है। जिसके कारण सरकार की शक्तियां पिछले कानून की तुलना में ज्यादा बढ़ गई है। सरकार और जांच एजेंसियां इसमें निरंकुश हो सकती हैं। जैसा कि अभी पिछले कुछ वर्षों से देखा जा रहा है। आरोपों के आधार पर लंबे समय तक नागरिकों को जेल में बंद रखा जाता है। जब अदालत से उनका फैसला आता है। वह निरपराध साबित होते हैं। जांच अधिकारी या सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। जिसके कारण नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है। जो नए कानून बनाए गए हैं, उसकी जांच प्रक्रिया में तकनीकी का इस्तेमाल भी किया गया है। भारत जैसे देश में जहां इंटरनेट की उपलब्धता आज भी नहीं है। वहां पर कानून के नए प्रावधान न्याय व्यवस्था को प्रभावित करने वाले साबित हो सकते हैं। भारतीय न्याय संहिता की धारा 106(2)को फिलहाल गृह मंत्रालय ने स्थगित करके रखा है। हिट एंड रन के इस कानून का भारी विरोध हुआ था। जिसके कारण सरकार ने इसे लागू नही करने का निर्णय लिया है। 1 जुलाई से यह लागू नहीं होगा। गवाहों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की जो सुविधा उपलब्ध कराई गई है। इसे नागरिकों तथा न्याय व्यवस्था के लिए बेहतर माना जा रहा है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से गवाही देने की सुविधा होने से अब गवाहों को डराने धमकाने या रास्ते में उनके ऊपर हमला करने जैसी घटनाएं नहीं होगी। लोग बिना किसी डर भय के गवाही, दे पाएंगे। इससे न्याय प्रक्रिया में निश्चित रूप से सुधार आएगा। अंग्रेजों के बने हुए कानून में आरोपी पर तभी मुकदमा चलाया जा सकता था। आरोपी का अदालत में हाजिर होना जरूरी था। जो नए संशोधन किए गए हैं। उसके अनुसार यदि 90 दिन तक जांच एजेंसियां आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर पाती हैं। आरोपी अदालत में उपस्थित नहीं होता है। ऐसी स्थिति में उसकी गैर मौजूदगी में भी मुकदमा चलाया जा सकता है। उसकी संपत्ति जप्त की जा सकती है। नए संशोधन में समय सीमा के अंदर मुकदमों की सुनवाई हो। इसका भी प्रावधान किया गया है। यह प्रावधान अंग्रेजों के बनाये हुए कानून में भी थे। जिनका कुछ वर्षों पहले तक जांच एजेंसियों और अदालतों में पालन होता था। अब वह स्थिति नहीं है। जिस तरह से सरकार रोजाना नित्य नए कानून बना रही हैं। बार-बार कानून और नियमों को संशोधित किया जा रहा है। सरकार जल्दबाजी में नियम कानून बना देती है। बार-बार संशोधन हो रहे हैं। सरकार का हस्तक्षेप नागरिक जीवन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ता ही चला जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरुप पिछले दो दशकों में भारत की न्यायालयों में मुकदमों की संख्या बड़ी तेजी के साथ बढ़ी है। जांच एजेंसियों के पास शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। जिसके कारण नागरिकों को जांच एजेंसियों और अदालतों से न्याय मिलने में काफी विलंब हो रहा है। जिसके कारण लोगों में रोष बढ़ रहा है। जिस हिसाब से शिकायतें बढ़ रही हैं। अदालतों में मामले जा रहे हैं। उस हिसाब से ना तो जांच करने के लिए सरकार ने पुलिस बल बढ़ाया गया है। नाही अदालतों में जजों की संख्या बढ़ाई गई है। ऐसी स्थिति में लंबे समय तक लोगों को न्याय नहीं मिल पाता है। कानून और नियमों में स्पष्टता नहीं होने के कारण, रोजाना नए-नए कानून बनने, उनमें लगातार संशोधन होने से न्याय व्यवस्था में वास्तविक सही न्याय और जवाब देही तय नहीं हो पा रही है। जिसके कारण लोगों का न्यायपालिका और जांच एजेंसियों की कार्य प्रणाली से विश्वास कम होता जा रहा है। यह चिंता का विषय है। फिर भी जो बदलाव किए गए हैं, उसमें कुछ वर्तमान समय के हिसाब से सही हैं। सरकार ने जिस तरीके के प्रावधान नए कानून में किए हैं। उसमें सरकार को ऐसे-ऐसे अधिकार मिल गए हैं। जिसमें वह किसी को भी लंबे समय तक जेल में बंद करके रख सकती है। न्यायालय से उसे जमानत भी नहीं मिल सकती है। यह चिंता का विषय है। नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सुरक्षित रखने का दायित्व भारतीय संविधान ने न्यायपालिका को दिया हुआ है। न्याय पालिका की सर्वोच्चता बनाए रखना, नागरिकों के मौलिक अधिकार को सुरक्षित रखना और लोकतंत्र मजबूत हो। इसका ध्यान रखने की जरूरत है।