पिछले वर्ष भारत ने जी-20 समूह के अध्यक्ष के नाते जी-20 सम्मेलन आयोजित किया था। कई मायनों में यह सम्मेलन अभूतपूर्व था। खास तौर पर वैश्विक स्तर पर चल रहे विवादों, संघर्ष और युद्ध के वातावरण के बावजूद आम सहमति से घोषणा पत्र जारी किया गया। भारत से पूर्व इंडोनेशिया ने इसकी अध्यक्षता संभाली थी, लेकिन उस समय अंतिम घोषणा पत्र में रूस-यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में रूस की आलोचना की गई थी। जी-20 समूह, 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट में अस्तित्व में आया था। भारत में जी-20 सम्मेलन बहुत धूमधाम से आयोजित किया गया। इसकी न सिर्फ भौतिक तैयारियां, बल्कि बौद्धिक तैयारियां भी पूरी गंभीरता से की गई थीं। 2023 के सम्मेलन में भारत द्वारा रूस के बारे में कुशलतापूर्वक न केवल विवादास्पद भाषा से बचा जा सका, बल्कि विश्व के समक्ष उपस्थित मुद्दों, खास तौर पर बहुपक्षीय विकास बैंकों समेत वैश्विक वित्तीय संस्थानों में पूंजीगत संरचना में बदलाव, क्रिप्टो करैंसी, वैश्विक ऋण संबंधी समस्याओं का प्रबंधन, मौसम परिवर्तन से जुड़े वित्तीयन के मुद्दे आदि, सभी पर खुली चर्चा का मार्ग भी प्रशस्त हुआ।
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के आधार पर ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य’ के ध्येय वाक्य ने वैश्विक स्तर पर चल रहे विवादों, संघर्षों, समस्याओं, मुद्दों को जैसे एक सूत्र में पिरो दिया था। ब्राजील की राजधानी रियो में सम्पन्न जी-20 सम्मेलन में इन विषयों को आगे ले जाने की एक विशेष चुनौती थी, इसलिए ब्राजील के जी-20 सम्मेलन में हुई चर्चाओं और सहमतियों को उस आलोक में भी देखना महत्वपूर्ण है। रियो, ब्राजील में सम्पन्न सम्मेलन का थीम रहा ‘एक न्यायपूर्ण विश्व और एक धारणीय ग्रह’। जी-20 सम्मेलन में ब्राजील के राष्ट्रपति लुला डि सिलवा ने कहा कि जी-20 सम्मेलन 2024, पिछले वर्ष की भारत की अध्यक्षता से प्रेरित रहा और भारत की सम्मेलन को आयोजित करने की कुशलता को प्राप्त करने की कोशिश इस सम्मेलन में की गई है। जी-20 सम्मेलन में ब्राजील के राष्ट्रपति ने सदस्य राष्ट्रों को अपने पर्यावरण लक्ष्यों को बढ़ाने का आह्वान किया। जी-20 सम्मेलन के घोषणा पत्र में पर्यावरण वित्तीयन पर गतिरोध खत्म करने की जरूरत पर बल दिया, लेकिन उसके समाधान के बारे में स्पष्ट मार्गदर्शन देने में यह घोषणा पत्र असफल रहा। समझना होगा कि पर्यावरण वित्तीयन पर यह गतिरोध लगातार बना हुआ है, जो न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग और मौसम परिवर्तन जैसे अत्यंत गंभीर मुद्दों पर विकसित देशों की असंवेदनशीलता भी दर्शाता है। हालांकि सम्मेलन का घोषणा पत्र यह कहता है कि पर्यावरणीय वित्त को सभी स्रोतों से अरबों से खरबों डॉलर तक तेजी से और पर्याप्त रूप से बढ़ाना जरूरी है, इसके बारे में ठोस रणनीति या संवेदनशीलता कहीं दिखाई नहीं देती। जी-20 सम्मेलन के पहले सत्र, जिसका मुद्दा ‘भुखमरी और गरीबी के खिलाफ एकजुटता’ था, को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘भारत ने 10 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है, 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज दे रहे हैं। 55 करोड़ लोग फ्री हेल्थ बीमा का लाभ उठा रहे हैं। किसानों को 20 बिलियन डॉलर (168 हजार करोड़ रुपए) दिए।
भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा में योगदान दे रहा है। हाल में ही मलावी, जाम्बिया और जिम्बाब्वे में मदद पहुंचाई है। ’ प्रधानमंत्री के भाषण में पिछले सम्मेलन के थीम एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य का जिक्र आया और उन्होंने इसे इस सम्मेलन के लिए भी उतना ही प्रासंगिक बताया। यही नहीं, उन्होंने जी-20 सम्मेलन में अफ्रीकी यूनियन को शामिल करने की बात को भी रखा। समझना होगा कि यह जी-20 के लिए एक मील का पत्थर था। प्रधानमंत्री ने कहा कि युद्ध के कारण दुनिया में खाद्य, तेल और उर्वरक का संकट पैदा हुआ है और विकासशील राष्ट्रों (ग्लोबल साऊथ) पर इसका असर सबसे ज्यादा हुआ है। प्रधानमंत्री के भाषण में यह भी रेखांकित किया गया कि जी-20 की चर्चा तभी सफल होगी, जब ग्लोबल साऊथ की चुनौतियों और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा जाएगा। यही नहीं जी-20 सम्मेलन 2024 में पर्यावरणीय वित्त पर कोई ठोस बात नहीं हो पाई। पर्यावरण के विषय से जुड़े लोग इस बात को लेकर भी चिंतित हैं कि जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने संबंधी भी कोई बात घोषणा पत्र में नहीं आ पाई। गौरतलब है कि जीवाश्म ईंधन के उपयोग को समाप्त करने संबंधी मुद्दे पर विश्व में एक मत नहीं है। जहां भारत सरीखे देश इस बात पर जोर दे रहे हैं कि केवल कोयले के उपयोग को कम करने पर ही नहीं, बल्कि पेट्रोलियम तेल के उपयोग करने पर भी उतना ही बल दिया जाना चाहिए। लेकिन अमरीका और अरब देशों समेत अधिकांश विकसित देश भी चतुराई से केवल कोयले के उपयोग को कम करने की वकालत कर रहे हैं। उधर दुबई में आयोजित कॉप-28 सम्मेलन में देशों ने जीवाश्म ईंधनों के उपयोग को कम करने संबंधी सहमति दर्शाई थी, लेकिन पर्यावरण से जुड़े कार्यकर्ताओं को लगता है कि जी-20 घोषणा पत्र में जीवाश्म ईंधनों के उपयोग के बारे में बात नहीं आने से कॉप-29 में यह मुद्दा और कमजोर हो जाएगा।