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Home लेख/सम सामयिकी

अयोध्या… त्रेता से भविष्य तक…

Rajpath Mathura by Rajpath Mathura
in लेख/सम सामयिकी
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-विवेक रंजन श्रीवास्तव-

भारतीय मनीषा में मान्यता है कि देवों के देव महादेव अनादि हैं। उन्हीं भगवान् सदाशिव को वेद, पुराण और उपनिषद् ईश्वर तथा सर्वलोकमहेश्वर कहते हैं। भगवान् शिव के मन में सृष्टि रचने की इच्छा हुई। उन्होंने सोचा कि मैं एक से अनेक हो जाऊँ। यह विचार आते ही सबसे पहले शिव ने अपनी परा शक्ति अम्बिका को प्रकट किया तथा उनसे कहा कि हमें सृष्टि के लिये किसी दूसरे पुरुष का सृजन करना चाहिये, जिसे सृष्टि संचालन का भार सौंपा जा सके। ऐसा निश्चय करके शक्ति अम्बिका और परमेश्वर शिव ने अपने वाम अंग के दसवें भाग पर अमृत स्पर्श कर एक दिव्य पुरुष का प्रादुर्भाव किया।
पीताम्बर से शोभित चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित उस दिव्य शक्ति पुरुष ने भगवान् शिव को प्रणाम किया। भगवान् शिव ने उनसे कहा- हे वत्स ! व्यापक होने के कारण तुम्हारा नाम विष्णु होगा। सृष्टि का पालन करना तुम्हारा कार्य होगा। भगवान् शिव की इच्छानुसार श्री विष्णु कठोर तप में निमग्न हो गये। उस तपस्या के श्रम से उनके अंगो से जल धाराएँ निकलने लगीं, जिससे सूना आकाश भर गया। अंततः उन्होंने उसी जल में शयन किया। जल अर्थात् नार में शयन करने के कारण ही श्री विष्णु का एक नाम नारायण हुआ। तदनन्तर नारायण की नाभि से एक उत्तम कमल प्रकट हुआ। भगवान् शिव ने अपने दाहिने अंग से चतुर्मुख ब्रह्मा को प्रकट करके उस कमल पर उन्हें स्थापित कर दिया। महेश्वर की माया से मोहित ब्रह्मा जी कमल नाल में भ्रमण करते रहे, पर उन्हें अपने उत्पत्तिकर्ता का पता नहीं लग रहा था। आकाशवाणी द्वारा तप का आदेश मिलने पर ब्रह्माजी ने बारह वर्षों तक कठोर तपस्या की। आदि शिव ने प्रकट हो भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा जी से कहा – हे सुर श्रेष्ठ ! आप पर जगत् की सृष्टि का भार रहेगा तथा हे प्रभु विष्णु ! आप इस चराचर जगत् के पालन व्यवस्था हेतु सारे विधान करें। इस प्रकार भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार की भूमिका के निर्वाह में कर्ताधर्ता हैं। भागवत के अनुसार भगवान विष्णु को जग की व्यवस्था बनाये रखने के लिये दशावतार की पौराणिक मान्यता है। भगवान विष्णु अपने सातवें अवतार में त्रेता युग में स्वयं मर्यादा पुरोषत्तम श्री राम के रूप में इस धरती पर मनुष्य रूप में आये। इसके उपरांत द्वापर में श्री कृष्ण के और फिर बुद्ध के रूप में भगवान का अवतरण हो चुका है। ग्रंथों के अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु अपने दसवें अवतार में कल्कि रूप में अवतार लेंगे। कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग का पुनः संधिकाल होगा। कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे। सृष्टि का यह अनंत क्रम निरंतर क्रमबद्ध चलते रहने की अवधारणा भारतीय मनीषा में की गई है।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अवतारी परमेश्वर थे पर उन्होंने सामान्य बच्चे की तरह माता के गर्भ से जन्म लिया। श्रीराम का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को माना जाता है।

महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण के बाल काण्ड में श्री राम के जन्म का उल्लेख इस तरह किया गया है। जन्म सर्ग 18 वें श्लोक 18-8-10 में महर्षि वाल्मीक जी ने उल्लेख किया है कि श्री राम जी का जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अभिजीत महूर्त में हुआ। आधुनिक वैज्ञानिक युग में कंप्यूटर द्वारा गणना करने पर यह तिथि 21 फरवरी, 5115 ईस्वी पूर्व निकलती है।

गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस के बाल काण्ड के 190 वें दोहे के बाद पहली चौपाई में तुलसीदास ने भी इसी तिथि और ग्रह नक्षत्रों का वर्णन किया है। वाल्मीकि रामायण की पुष्टि दिल्ली स्थित संस्था इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदा ने भी की है। वेदा ने खगौलीय स्थितियों की गणना के आधार पर ये थ्योरी बनाई है। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार जिस समय राम का जन्म हुआ उस समय पांच ग्रह अपनी उच्चतम स्थिति में थे। यूनीक एग्जीबिशन ऑन कल्चरल कॉन्टिन्यूटी फ्रॉम ऋग्वेद टू रोबॉटिक्स नाम की एग्जीबिशन में प्रस्तुत रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार भगवान राम का जन्म 10 जनवरी, 5114 ईसा पूर्व सुबह बारह बजकर पांच मिनट पर हुआ (12:05 ए.एम.) पर हुआ था। यह तिथि इतनी अर्वाचीन है कि उसकी गणना में छोटी सी भी मानवीय त्रुटि बड़ा परिवर्तन कर सकती है अतः इस सबके ज्ञान मार्गी तर्क से परे भगवान राम के जन्म के रसमय भक्ति मार्गी आनन्द का अवगाहन ही सर्वथा उपयुक्त है।

संस्कृत के अमर ग्रंथ महाकवि कालिदास ने रघुवंश की कथा को १९ सर्गों में बाँटा है जिनमें अयोध्या के सूर्यवंश के राजा दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम, लव, कुश, अतिथि तथा बाद के 29 रघुवंशी राजाओं की कथा कही गई है। रामायण के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा दशरथ को चौथेपन तक संतान प्राप्ति नहीं हुई, एक बार दशरथ मन माही, भई गलानि मोरे सुत नाही। ईश्वरीय शक्तियों के मानवीकरण का इससे सहज उदाहरण और क्या हो सकता है? राजा दशरथ और माता कौशल्या पुत्र कामना से अयोध्या के राजभवन में यज्ञ करते हैं। फिर राजा दशरथ को माता कौसल्या, सुमित्रा और कैकेयी रानियों से राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न पुत्रों का जन्म होता है। अयोध्या में खुशहाली छा जाती है।

भगवान राम सारी बाल लीलायें करते हैं ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां …। गुरु गृह गये पढ़न रघुराई, अल्प काल विद्या सब पाई ! … फिर दुष्टों के संहार के जिस मूल प्रयोजन से भगवान ने अवतार लिया था, उसके लिये भगवान श्री राम अनुकूल स्थितियां रचते जाते हैं पर मानवीय स्वरूप और क्षमताओ में स्वयं को बांधकर ही मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर दुष्ट राक्षसों का अंत कर समाज में आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पुरुष, आदर्श राजा के चरित्रों की स्थापना करते हैं। राम कथा से भारत ही नहीं दुनियां भर सुपरिचित है। विभिन्न देशों, अनेको भाषाओ में राम लीलाओ में निरंतर रामकथा कही, सुनी जाती है और जन मानस आनंद के भाव सागर में डूबता उतराता, राम सिया हनुमान की भक्ति से अपनी कठिनाईयों से मुक्ति के मार्ग बनाता जीवन दृष्टि पा रहा है।

स्वाभाविक है कि अयोध्या में भगवान श्रीराम के जन्म स्थल पर एक भव्य मंदिर सदियों से विद्यमान था। जब मुगल आक्रांताओ ने भारत में आधिपत्य के लिये आक्रमण किये तब सांसकृतिक हमले के लिये १५२८ में राम जन्म भूमि के मंदिर को तोड़कर वहां पर मस्जिद बनाई गई। हिन्दुओ को अस्तित्व के लिये बड़े संघर्ष का सामना करना पड़ा। ऐसे दुष्कर समय में साहित्य ही सहारा बना और भक्ति कालीन कवियों ने हिंदुत्व को पीढ़ीयों में जीवंत बनाये रखा। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास कृत अवधी भाषा में लिखि गई राम चरित मानस हिन्दुओ की प्राण वायु बनी। गिरमिटिया मजदूर के रुप में विदेशों में ले जाये गये हिन्दूओ के साथ उनके मन भाव में मानस और राम कथा अनेक देशों तक जा पहुंची और रामकथा का वैश्विक विस्तार होता चला गया।
१८५३ में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस राम जन्म भूमि को लेकर संघर्ष हुआ। १८५९ में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अन्दर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा। देश की अंग्रेजों से आजादी के बाद १९४९ में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया। सन् १९८६ में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।

सन् १९८९ में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की। ६ दिसम्बर १९९२ को अयोध्या में कथित अतिक्रमित बाबरी मस्जिद ढ़हा दी गई। आस्था के सतत सैलाब से कालांतर में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार वर्तमान स्वरूप विकसित हो सका और अब वह शुभ समय आ पहुंचा है जब पांच सौ वर्षो के बाद राम लला पुनः भव्य स्वरूप में जन्म स्थल पर सुशोभित हो रहे हैं।

अयोध्या का भविष्य अत्यंत उज्जवल है, विश्व में भारतीय संस्कृति की स्वीकार्यता बढ़ रही है। भारत महाशक्ति के रूप में स्वीकार किया जाने लगा है। दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज नहीं काहुहि व्यापा की अवधारणा राम राज्य की आधारभूत संकल्पना है और अयोध्या इसकी प्रेरणा के स्वरूप में विकसित की जा रही है। वर्तमान समय आर्थिक समृद्धि का समय है, जैसे सरोवर को पता ही नहीं चलता और उससे वाष्पीकृत होकर जल बादलों के रूप में संचित हो जाता है प्रकृति वर्षा करके पुनः सबको बराबरी से अभिसिंचित कर देती है, राम राज्य में कर प्रणाली इसी तरह की थी कि टैक्स देने वाले को देने का कष्ट नहीं होता था। वर्तमान सरकार से ऐसी ही कर प्रणाली की अपेक्षा जनमानस कर रहा है, अयोध्या का राम जन्म भूमि मंदिर ऐसे शासन की याद दिलाने की प्रेरणा बने।

अयोध्या जिसे पहले साकेत नगर के रूप में भी जाना जाता था सरयू नदी के तट पर बसी एक धार्मिक एवं ऐतिहासिक नगरी है। यह उत्तर प्रदेश राज्य में है तथा अयोध्या नगर निगम के अंतर्गत इस जनपद का नगरीय क्षेत्र समाहित है। यह प्रभु श्री राम की पावन जन्मस्थली के रूप में हिन्दू धर्मावलम्बियों के आस्था का केंद्र है। अयोध्या प्राचीन समय में कोसल राज्य की राजधानी एवं प्रसिद्ध महाकाव्य रामायण की पृष्ठभूमि का केंद्र थी। प्रभु श्री राम की जन्मस्थली होने के कारण अयोध्या को मोक्षदायिनी एवं हिन्दुओं की प्रमुख तीर्थस्थली के रूप में माना जाता है। राम जन्म स्थल पर नये मंदिर के निर्माण के बाद अब अयोध्या वैश्विक पर्यटन मानचित्र पर अंकित हो चली है और यहां जो विश्वस्तरीय जन सुविधा विकसित हो रही है उससे यह हिन्दुओ की आस्था का सुविकसित केंद्र बनकर सदा सदा हमें नई उर्जा प्रदान करती रहेगी।

Tags: #Ayodhya Ram Mandir # Ram Mandir History
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