-आनंद कु. अनंत
धनवान बलवॉल्लोके कहकर वेदों में बताया गया है कि इस संसार में वही बलवान होता है, जिसके पास धन होता है। सूक्तियों के माध्यम से यह भी बताया गया है कि मनुष्य किसी का दास नहीं होता बल्कि वह धन का दास होता है। मनुष्य धन होने पर बड़ा और निर्धन होने पर छोटा माना जाता है। पुरूषार्थ से धन कमाया जा सकता है। यह भी सच है कि कभी-कभी पुरूषार्थ के बाद भी व्यक्ति धनी नहीं बन पाता किंतु भाग्य से धनवान बन जाता है। किसी की कुण्डली में अगर धनवान बनने का योग है तो वह निश्चय ही धनवान बनता है। कुण्डली का योग निश्चित फलित होता है।
ज्योतिष ग्रंथों में धनवान बनने के अनेक योग बताए गये हैं। उन्हीं में से एक योग है लक्ष्मी योग। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह अति धनवान, कुलीन, विद्वान, उच्चपदधारी, तथा ख्यातिवान निश्चित बनता है। उस व्यक्ति के घर में लक्ष्मी की कृपा हमेशा बरसती रहती है। वह समाज में पूजनीय बन जाता है तथा सभी प्रकार के ऐशोआराम उसे प्राप्त होते रहते हैं।
जन्म कुण्डली में लक्ष्मी योग तब बनता है, जब लग्नेश अर्थात लग्न के मालिक और नवमेश अर्थात नवम भाव के स्वामी की केंद्र या त्रिकोण में युति संबंध होता है। यह योग लग्नेश के बलवान होने और नवमेश के केंद्र या त्रिकोण में या उच्च का होने पर भी बनता है। लग्नेश या नवमेश एवं शुक्र स्वराशि के या उच्च के केंद्र या त्रिकोण में हो तो भी कुण्डली में लक्ष्मीयोग बनता है। अगर लग्नेश एवं नवमेश में दृष्टि संबंध हो तो यह योग सामान्य स्तर का होता है।
कुण्डली में जो भी अच्छे या बुरे योग बनते हैं, वे सभी पूर्वजन्म के अर्जित पुण्य या पापों के कारण ही बनते हैं। कुण्डली के योगों का प्रभाव जीवन पर अवश्य ही पड़ता है। समाज के धनी लोगों की जन्मकुण्डली का अध्ययन किया जाया तो किसी न किसी रूप में उनकी कुण्डली में लक्ष्मीयोग अवश्य ही देखने को मिलेगा।
अगर किसी की कुण्डली में द्वितीयेश से आठवें और बारहवें भाव में शुक्र स्थित हो या सप्तमेश से चौथे, नवें और आठवें भाव में क्र मशः चंद्र, बृहस्पति तथा बुध स्थित हो या लग्नेश से चौथे, दसवें तथा एकादश भाव में क्र मशः सूर्य, शुक्र या मंगल स्थित हो तो उसमें हरिहरब्रह्मा योग बनता है। कुण्डली में इस योग का होना अपने आप में आश्चर्य की बात है।
जिस व्यक्ति की कुण्डली में हरिहरब्रह्मा योग बनता है वह वेदों का महान ज्ञाता होता है। उस व्यक्ति को सम्पूर्ण सुख-सुविधाएं घेरे रहती हैं तथा वह मृदुभाषी, दूसरों की सहायता करने वाला, तथा दयालु प्रवृत्ति का होता है। बड़े से बड़े शत्रु उसके सामने घुटने टेक देते हैं। ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की कृपा से बनने वाला यह योग जातक को महान बना देता है। बहुत ही भाग्यशाली होते हैं ऐसे व्यक्ति जिनकी कुण्डली में हरिहरब्रह्मा योग बनता है।
जब जन्मकुण्डली में गुरू नवमें घर के स्वामी से केंद्र में हो, शुक्र ग्यारहवें घर के स्वामी से केंद्र में हो एवं बुध या तो लग्न में हो या दसवें घर के स्वामी से केंद्र में हो तो उस कुण्डली में ब्रह्मयोग बनता है। तीनों शुभ ग्रह से ही यह योग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला जातक काफी धनी, विद्वान, लम्बी उम्रवाला, दानी एवं हमेशा अच्छा काम करने वाला होता है। ये सभी योग स्त्री पुरूष दोनों की ही जन्म कुण्डलियों में मिल सकते हैं।
जन्म कुण्डली में लक्ष्मी योग बनने से जातक के पास धन की कोई कमी नहीं होती किंतु उस जातक को हमेशा लक्ष्मी से संबंधित स्तोत्रों, मंत्रों आदि का पाठ या जप करते रहना चाहिए। उस जातक को स्त्री जाति के प्रति कभी भी बुरा नहीं सोचना चाहिए क्योंकि लक्ष्मी वहीं रहती हैं जहां पवित्रता होती है। ओम हीं महालक्ष्म्यै नमः का जाप करते रहने से लक्ष्मीयोग का प्रभाव शीघ्र दिखाई देने लगता है। हरिहरब्रह्मा योग वाले को शंकर की पूजा तथा ब्रह्मयोग वाले जातक को ब्रह्मा की पूजा-अर्चना करते रहने से इन योगों का प्रत्यक्ष फल दिखाई देने लगता है।