जब किसी प्रदेश का शासन प्रमुख अर्थात् राज्यपाल ट्रेन से सफर कर राज्य के किसी घटना स्थल पर पहुंचे और एक पुलिस अधिकारी की तरह घटनास्थल पर पीड़ितों के बयान ले और स्वयं उसी जगह यह घोषणा भी करें कि वे राष्ट्रपति जी को शीघ्र ही इसकी रिपोर्ट भेजेंगे, इसका सीधा-सीधा तात्पर्य तो यही हुआ कि वह गैर भाजपा शासित राज्य है और वहां अगले साल राष्ट्रपति शासन के दौरान विधानसभा चुनाव कराने है, जी हां…. यह कहानी पश्चिम बंगाल की ही है, जहां मुर्शिदाबाद में हुए हादसे की जांच करने स्वयं राज्यपाल महोदय ट्रेन से पहुंचे और अब यह प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है कि संभवतः अगले कुछ ही दिनों में राज्यपाल महोदय की रिपोर्ट पर केन्द्र सरकार पश्चिम बंगाल की सरकार बर्खास्त करवाकर राष्ट्रपति शासन लगा सकती हैं।
यहां यह स्मरणीय है कि पश्चिम बंगाल की ममता सरकार एक लम्बे समय से केन्द्र की मोदी सरकार की आंख की किरकिरी बनी हुई है, और मोदी जी व उनकी भारतीय जनता पार्टी के लिए परेशानी का कारण बनी हुई है, इसलिए मोदी सरकार लम्बे समय से उन वैधानिक व संवैधानिक कारणों की तलाश में रही है, जिनके आधार पर पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सके, अब इस प्रदेश के मुर्शिदाबार में घटी घटना ने ममता विरोधियों के चेहरे पर मुस्कुराहट ला दी है तथा राज्यपाल के तुरंत-फुरत दौरे और उनकी रिपोर्ट के बाद अब पश्चिम बंगाल में कभी भी ममता सरकार को बर्खस्त कर राष्ट्रपति शासन की घोषणा की जा सकती है, जबकि इस प्रदेश में अगले वर्ष विधानसभा के चुनाव होना है और भाजपा इस प्रदेश पर भी अपना वर्चस्व कायम करना चाहती है।
अब देश के विभिन्न हिस्सों में जो कुछ भी घटित हो रहा है, वह सबसे अहम् चिंता का विषय है, 2026 में होने वाले चुनावों से पहले तमिलनाडु में उत्तर-दक्षिण की दरारें गहरा रही है और मुर्शिदाबाद के बाद पश्चिम बंगाल में साम्रदायिक धु्रवीकरण की संभावना बढ़ रही है, ये दोनों ही परिदृष्य देश की भावी राजनीति के लिए चिंताजनक बने हुए है।
अब एक ओर जहां देश राजनीतिक दृष्टि से खतरनाक मोड़ पर खड़ा है, वहीं उप-राष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ जी ने कई नए संवैधानिक सवाल खड़े कर दिए है, वह भी न्यायपालिका और विधायिका के अधिकारों को लेकर। उप-राष्ट्रपति जी का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रपति को कोई आदेश-निर्देश नही दे सकता, उन्होंने न्याय पालिका को उसकी संवैधानिक सीमाऐं याद दिलाई है और कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय सुपर संसद बनने का प्रयास न करें, कानून बनाना संसद का अधिकार है और जहां तक चुनावों का सवाल है सरकार जनता के प्रति जिम्मेदार है, सरकार व संसद के साथ संवैधानिक सर्वोच्च पदों की भी अपनी सीमाऐं है, जिनके अधीन रहकर सभी को काम करना चाहिए। जबकि अब धीरे-धीरे न्याय पालिका का व्यवहार ‘संसद’ जैसा होता जा रहा है।
देश में घट रही राजनीतिक घटनाओं के चलते उप-राष्ट्रपति जी पिछले दिनों काफी मुखर हो गए, उन्होंने शीर्ष अदालत द्वारा कथित तौर पर संविधान की मनमानी व्याख्या पर भी घोर आपत्ती जताई और कहा कि लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ परमाणु मिसाईल बन गया है, अनुच्छेद-142 उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति का अधिकार न्याय पालिका द्वारा अपने पास रखना भी संविधान की मूल भावना के विपरीत है। जबकि न्याय पालिका की कार्य प्रणाली यह है कि जज के दरवाजे पर मिली सम्पत्ति की प्राथमिकी आज तक दर्ज रही हुई। इस प्रकार कुल मिलाकर अब प्रजातंत्र के स्तंभ स्पष्ट रूप से एक दूसरे के सामने आक्रामक मुद्रा में आकर खड़े हो गए है, अब ऐसी स्थिति में हमारे प्रजातंत्र का हश्र क्या होगा? यही सबसे बड़ा आज चिंता का कारण है।