जो अपने आप को कट्टर ईमानदार कहते थे, वे इस समय कट्टर बेईमान सिद्ध हो चुके हैं। कभी कैग की रिपोर्ट को आधार बनाकर दिल्ली में कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार को सत्ता से बाहर फेंकने में सफल हुए केजरीवाल उस समय देश के प्रमुख नेताओं को भ्रष्टाचारी कहकर कोसते फिरा करते थे। उन्होंने मुलायम सिंह यादव, सोनिया गांधी, शरद पवार और मायावती जैसी राजनीतिक हस्तियों को नाक से पानी पिला दिया था। लोगों ने केजरीवाल को राजनीति में एक नई आशा के रूप में देखा था। देश के अधिकांश लोगों को ऐसा लगा था कि वह राजनीति में कुछ नया कर पाने में सफल होंगे। दिल्ली की जनता ने उन्हें दिल्ली की कमान सौंपकर सारे देश को यह संदेश दिया था कि अब प्रचलित राजनीति और राजनेताओं की ओर न देखकर नए विकल्प खोजने की तैयारी करनी चाहिए।
केजरीवाल धूमकेतु की भांति राजनीति के शिखर पर चढ़े। राजनीति को उन्होंने अपनी चमक से एक बार भौचक्का सा कर दिया था। तब किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि वह इतनी शीघ्रता से नीचे आ जाएंगे? परन्तु आज का सच यही है कि केजरीवाल अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे दिनों से गुजर रहे हैं। उन्होंने राजनीति में ‘ रेवड़ी संस्कृति ‘ को स्थापित कर एक नई राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को जन्म दिया। जिसमें जनता के लोक कल्याणकारी कार्यों की ओर ध्यान न देकर देश प्रदेश के खजाने को खाली करने पर राजनेताओं ने ध्यान देना आरंभ किया। निसंदेह भाजपा ने भी इस ‘ राजनीतिक अपसंस्कृति’ को अपनाने में कोई संकोच नहीं किया।
यह कितना रोचक तथ्य है कि जो केजरीवाल कभी कैग की रिपोर्ट को आधार बनाकर शीला दीक्षित को सत्ता से बेदखल करने में सफल हुए थे, आज उन्हीं के लिए कैग की रिपोर्ट जी का जंजाल बन चुकी है। उन्होंने कभी कैग की रिपोर्ट को ही आधार बना कर लोकपाल विधेयक लाने की मांग की थी, परन्तु जब वह सत्ता में आए तो उन्होंने लोकपाल विधेयक लाने की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया। इसके विपरीत उन्होंने यह दिखाने का प्रयास किया कि वह स्वयं ही लोकपाल हैं अर्थात वे स्वयं इतने ईमानदार हैं कि उन्हें अपने ऊपर किसी लोकपाल को स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है। अपने इसी अहंकारी स्वभाव के कारण उन्होंने जेल जाकर भी मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया। यद्यपि दिल्ली सहित सारे देश की जनता उनसे उस समय यह अपेक्षा कर रही थी कि वे अपने आप को दूध का धुला सिद्ध करने के लिए राजनीति में किसी नए आदर्श की स्थापना करेंगे। केजरीवाल यह भूल गये कि राजनीति अपेक्षाओं का खेल है और जब कोई राजनेता अपेक्षाओं से खिलवाड़ करता है तो समय आने पर उसकी अपनी अपेक्षाएं ही बलि का बकरा बन जाती हैं। इसी को इतिहास की क्रूर नियति कहते हैं। आज के केजरीवाल इसी नियति का शिकार बन चुके हैं। वह देश में रोहिंग्या मुस्लिमों के मसीहा बनते जा रहे थे। इसी प्रकार खालिस्तानी आतंकियों को भी वह अपना समर्थन दे रहे थे।
उन्होंने राजनीति की शब्दावली को न्यूनतम स्तर पर लाकर राजनीति को घटिया स्वरूप प्रदान किया। राजनीतिक शालीनता को उन्होंने झूठों के पुलिंदों में बदल दिया। यहां तक कि राजनीतिक वेशभूषा को भी उन्होंने पैंट शर्ट अथवा पेंट और टीशर्ट में परिवर्तित कर दिया। ‘ मफलर संस्कृति’ को उन्होंने आम आदमी के नाम पर स्थापित करने का प्रयास किया, परंतु बहुत शीघ्र ही पैंट शर्ट अथवा टी शर्ट और पेंट या मफलर संस्कृति वाले लोग देश के मतदाताओं के लिए घृणा का पात्र बन गए। इसके पीछे केजरीवाल की राजनीतिक कार्य शैली ही महत्वपूर्ण रही।