नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि भारत के किसी भी हिस्से को ‘पाकिस्तान’ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह देश की क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ है।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की संविधान पीठ ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी श्रीशानंद द्वारा एक मामले की सुनवाई के दौरान बेंगलुरु के एक हिस्से को पाकिस्तान कहने के मामले में स्वत: संज्ञान सुनवाई करते हुए सख्त लहजे में यह टिप्पणी की।
संविधान पीठ ने हालांकि न्यायमूर्ति श्रीशानंद के इस मामले में खुली में माफी मांगने के मद्देनजर उनके खिलाफ शुरू की गई स्वत: संज्ञान कार्यवाही बंद कर दी। संविधान पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति श्रीशानंद ने अपने दो अलग-अलग कार्यवाहियों के दौरान बेंगलुरु के एक हिस्से को पाकिस्तान बताने और एक महिला अधिवक्ता के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी करने के लिए माफी मांग ली है। इसी के मद्देनजर उनके खिलाफ स्वत: संज्ञान कार्रवाई बंद करने का यह फैसला किया गया।
शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए अधिवक्ताओं, न्यायाधीशों और वादियों से कहा कि वे अदालत में पेश होने के दौरान किसी भी परिस्थिति में ऐसे आचरण करने में शामिल न हों। उन्हें यह समझना चाहिए कि कार्यवाही का सीधा प्रसारण अदालत के अलावा आम दर्शकों तक भी पहुंच है। पीठ ने कहा न्यायाधीशों के रूप में हमारे जीवन के अनुभवों पर आधारित प्रवृत्तियाँ होती हैं। साथ ही, एक न्यायाधीश को अपनी स्वयं की प्रवृत्तियों के बारे में भी जागरूक होना चाहिए। ऐसी जागरूकता के आधार पर ही हम निष्पक्षता प्रदान करने के अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान हो सकते हैं। आकस्मिक अवलोकन पक्षपात की एक हद तक संकेत दे सकते हैं, खासकर जब वे किसी लिंग या समुदाय के विरुद्ध निर्देशित हों।”
न्यायमूर्ति श्रीशानंद ने कथित तौर पर बेंगलुरु में एक मुस्लिम बहुल इलाके को ‘पाकिस्तान’ कहा था।
न्यायाधीश श्रीशानंद को एक अलग मामले में एक महिला अधिवक्ता के खिलाफ लैंगिक असंवेदनशील टिप्पणी करते हुए भी एक वीडियो में देखा गया। सोशल मीडिया ‘एक्स’ पर कई लोगों ने अपने अकाउंट अपने पोस्ट में उनकी टिप्पणियों पर आपत्ति जताई थी।
इसके बाद शीर्ष अदालत ने 20 सितंबर को इस मामले में स्वतः संज्ञान कार्यवाही शुरू की और संबंधित उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल से रिपोर्ट मांगी थी।
न्यायाधीश श्रीशानंद द्वारा की गई टिप्पणियों पर रजिस्ट्रार जनरल की 23 सितंबर की रिपोर्ट को देखते हुए शीर्ष अदालत की संविधान पीठ ने कहा कि रिपोर्ट पढ़ने से स्पष्ट रूप से संकेत मिलता है कि की गई टिप्पणियाँ जरूरी नहीं थीं और उन्हें टाला जाना चाहिए था।
संविधान पीठ ने कहा, “न्यायाधीश (श्रीशानंद) द्वारा खुली अपनी अदालत की कार्यवाही में मांगी गई माफ़ी को ध्यान में रखते हुए हम इसे न्याय और संस्था की गरिमा के हित में मानते हैं कि कार्यवाही को आगे जारी न रखा जाए।”
न्यायालय ने हालांकि कहा कि सोशल मीडिया की व्यापकता और पहुंच में कार्यवाही की व्यापक रिपोर्टिंग शामिल है। अधिकांश उच्च न्यायालयों ने सीधा प्रसारण या वीडियो कांफ्रेंसिंग को अपनाया है। कोविड 19 के दौरान न्याय तक पहुँच प्रदान करने के लिए सीधा प्रसारण और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की आवश्यकता सामने आई थी। पीठ ने कहा, “वकीलों, न्यायाधीशों और न्यायालय के सदस्यों को समझना चाहिए कि सीधा प्रसारण की दर्शकों तक महत्वपूर्ण पहुंच है, जो उन पर जिम्मेदारी डालती है।
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर प्रसारित उच्च न्यायालय की कार्यवाही की क्लिपिंग देखी है। उन्होंने कहा, “मैं सोच रहा था कि क्या इसे न्यायिक पक्ष के बजाय चैंबर में उठाया जा सकता है। मैंने कर्नाटक में बार के सदस्यों से बात की है। अगर कोई बड़ा मुद्दा बनता है तो इसके अन्य परिणाम हो सकते हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चूंकि न्यायाधीश ने अब माफी मांग ली है, इसलिए मामले को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया को नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
इस पर पीठ ने कहा, “आप इस देश के किसी भी हिस्से को पाकिस्तान नहीं कह सकते। यह मूल रूप से राष्ट्र की क्षेत्रीय अखंडता के विरुद्ध है।”
शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट पर भी गौर किया, जो न्यायाधीश के समक्ष दो कार्यवाहियों से संबंधित है। ये अदालती कार्यवाही छह जून 2024 और फिर 28 अगस्त, 2024 को और कार्यवाही हुई थी।