महारास लीला के सजीव वर्णन पर भक्ति नृत्य कर उठी
मानव बनने के लिए एकाग्रता आवश्यक
जिसे भी समर्पण से देखेंगे वहीं से मिलने लगेगा ज्ञान
वृन्दावन। कुम्भ में भागवताचार्य रसिक बिहारी विभू जी महाराज के कथा स्थल में भक्ति उस समय नृत्य कर उठी जब भागवताचार्य ने महारास लीला का मनोहारी सजीव वर्णन किया। उन्होंने कहा कि जब किसी को अहंकार आ जाता है तो ठाकुर जी उसे सन्मार्ग दिखाते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि को ठाकुर जी ने अपने अनन्त जन्मों के अनन्त अवतारों के साधकों को तृप्त किया और महारास रचाया। गोपियों को जैसे ही स्वयं की अलग सत्ता का भान हुआ भगवान वहां से अन्तध्र्यान हो गए। इसके बाद गोपियों व साधकों की गुहार पर वे एक बार फिर महारास प्रांगण में आए और इसे पूरा किया । उन्होंने न केवल राधा के साथ महारास किया बल्कि हर गोपी को यह महसूस करा दिया कि कान्हा तो केवल उन्ही के साथ नृत्य कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि ठाकुर की यह लीला ऐसी मनोहारी थी कि भगवान भोलेनाथ भी इसे देखनें से अपने आपको नहीं रोक सके और वे भी गोपी रूप में इसमें शामिल हुए। उन्होंने जैसे ही भगवान कृष्ण के बृज छोडने का वर्णन किया तो पंडाल में उदासी छा गयी। बृजमंडल सूना हो गया था एवं हर कोई अपने कान्हा के जाने से दुखी था। छठवे दिवस की कथा में उन्होंने बताया कि बृज से मथुरा पहुचकर भगवान ने कंस का उद्धार किया तथा जरासंध को 17 बार हराया। 18वी बार काल यवन के प्रभाव व ब्राहृमणों की रक्षा के लिए भगवान रणछोर बन गए।
उन्होंने बताया कि जिसकी दृष्टि मात्र से सम्पूर्ण धरती पर प्रलय आ सकती है वह मैदान छोडकर चले गए। ठाकुर जी द्वारिका के राजा बन गए और उनका विवाह माता रुक्मिणी से हुआ। भागवाताचार्य ने बताया कि गुरू अंकुश और दीए की कोई आयु नहीं होती है। गुरू की कोई आयु और आकार नहीं होता है। द्रोणाचार्य ने एकलव्य को यह कहकर ठुकरा दिया कि वे सिर्फ राजाओं के गुरू हैं। एकलव्य इससे आहत नहीं हुआ उसने गुरू की मिट्टी की मूर्ति बनाकर ज्ञान अर्जित किया और वह द्रोणाचार्य के शिष्य अर्जुन पर भारी पडा । उन्होंने बताया कि व्यक्ति की श्रद्धा व समर्पण ही गुरुत्व है। शरीरों के पूजने से गुरू जाग्रत नहीं होते है बल्कि जिसे भी समर्पण से देखेंगे वहीं से ज्ञान मिलने लगेगा। इसी प्रकार आर्शीवाद भी केवल श्रद्धा के आधार पर दिल से निकलता है।
विभू जी महाराज ने तोते की कथा सुनाते हुए कहा कि स्वतंत्रता तो मौन में हैं जो मौन है कम बोलता है संयमित बोलता है वह अनेक परेशानियों से बच जाता है। उनका कहना था कि मानव जीवन अनेक संभावनाओं का है । व्यक्ति को किसी चीज का गुलाम नहीं होना चाहिए। वेद कहता है कि मानव तू मानव बना रहे । एकाग्रता बडा गुण है तथा मानव बनने के लिए एकाग्रता आवश्यक है। मानव केवल शरीर से नहीं बल्कि कर्म से बना जाता है। उनका कहना था कि प्रेम का उत्तर अवश्य ही मिलता है। स्पर्श एक जैसा होता है पर जब वह अलग अलग व्यक्ति को किया जाता है तो भाव बदल जाता है। इसका अर्थ है कि शरीर कठपुतली है तथा नियंत्रण अन्दर से हो रहा है।