मथुरा । जयगुरुदेव आश्रम में 12वें वार्षिक भण्डारा सत्संग मेला के चौथे दिन राष्ट्रीय उपदेशक बाबूराम ने ‘‘पढ़ना लिखना चातुरी यह तो बात सहल, काम दहन मन वश करन, गगन चढ़न मुश्किल’’ पंक्ति को उद्धृत करते हुये कहा कि भौतिक विद्या का ज्ञान यानि पढ़ाई-लिखाई और चतुराई सीखना बहुत आसान है। यह ज्ञान शरीर के साथ समाप्त हो जाता है। शरीर में बैठी जीवात्मा कैसे जगाई जाती है, इसको भौतिकवादी नहीं जानते। वासनाओं, इच्छाओं को खत्म करना, मन को वश में करना, धुरवाणी और अनहदवाणी को सुनना अत्यन्त कठिन है। महात्माओं का विज्ञान बहुत ऊँचा है। संत महात्मा शंहशाओं के शंहशाह होते हैं। इनका दर्जा सबसे ऊपर होता है। समुद्र में उठने वाली लहरों की भांति मनुष्य शरीर में वासनाओं, इच्छाओं की अथाह लहरें उठती और गिरती रहती हैं। व्यक्ति इन वासनाओं की लहरों से निकल नहीं पाता, क्योंकि इन लहरों को देख नहीं पाता। जो किनारे बैठकर इन लहरों को देख लेता है, वह इनके खतरों से पार हो जाता है। इसको देखने और जानने की विद्या महात्माओं के सत्संग में बताई जाती है। महात्माओं के भण्डारे पर अनवरत दया की धार बहती है लेकिन हम सुरत के घाट पर नहीं बैठते हैं। इसलिये अनुभव नहीं हो पाता है।
राष्ट्रीय उपदेशक सतीश चन्द्र ने बताया कि परमार्थ का रास्ता बहुत कठिन होता है। गुरु कृपा के बगैर कोई पार नहीं कर सकता है। भरोसा और विश्वास के बिना परमार्थ के रास्ते पर एक कदम भी नहीं चल सकते हैं। जब सत्गुरु ने धुरधाम जाने का रास्ता दिया है तो एक न एक दिन जरूर पहुंचेंगे। गुरुमुखों की संगत में सुरत-शब्द की कमाई बराबर करते रहना है। किसी और विकल्प को करने की जरूरत नहीं है। अपने ख्याल को दुनियां में से निकाल कर सतगुरु में लगाने की जरूरत है। श्रद्धालु अपने घरों को वापिस लौटने लगे हैं। मन्दिर में प्रसाद वितरण बराबर चल रहा है।