कम से कम समय व लागत में अधिक से अधिक धन कमाने जैसी ‘शार्ट कट’ मानवीय प्रवृति ने लगभग पूरे देश को संकट में डाल रखा है। भारतीय बाज़ार में नक़ली व मिलावटी सामानों की भरमार इसी प्रवृति का नतीजा है। परन्तु जब यही मिलावटख़ोरी या नक़ली सामग्री का इस्तेमाल खाद्य सामग्रियों में होने लगता है तो निःसंदेह यह सीधे तौर पर इंसान की जान से खिलवाड़ करने या धीमा ज़हर देने के सिवा और कुछ नहीं। पूरा देश इस बात से भली भांति वाक़िफ़ है कि हमारे देश में दूध का जितना उत्पादन होता है उससे कई गुना ज़्यादा दूध व दूध से बनी ज़रूरी सामग्री की खपत होती है। यह दूध आख़िर कहाँ से आता है? सोशल मीडिया के वर्तमान दौर में ऐसी अनगिनत वी डी ओ वायरल हो चुकी हैं जिनमें नक़ली व ज़हरीला दूध बनते देखा जा सकता है। नक़ली व मिलावटी देसी घी, खोया सब कुछ देश में बन रहा है व बेचा जा रहा है। असली नक़ली का भेद न कर पाने वाली आम जनता उसी धीमे ज़हर को खाने पीने के लिये मजबूर है। और इन्हीं या इनसे बनी अनेक खाद्य सामग्रियों का सेवन कर तरह तरह की बीमारियों का शिकार हो रही है।
अब तो हद यह हो गयी है कि पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली, ग़ाज़ियाबाद, मोदीनगर और हरियाणा के जींद से अमूल जैसे लोकप्रिय देसी घी सहित कई अन्य कम्पनीज़ के ब्रांड के नाम पर बनने वाला नक़ली घी पकड़ा गया। ज़हरीली खाद्य सामग्री का व्यवसाय करने वाले यह लोग टेट्रा पैक पर अमूल घी, मधुसूदन घी, मदर डेयरी घी, पतंजलि गाय घी, वर्का घी, नेस्ले एवरीडे घी, आनंद घी, परम देशी घी, मिल्कफूड देशी घी, मधु घी, लक्ष्य घी और श्वेता घी जैसी कम्पनीज़ के नक़ली ब्रांड पैक इस्तेमाल करते थे। और इन्हीं अलग अलग कंपनी के ब्रांड नाम से तैयार किया जा रहा देसी घी बनाकर बाज़ार में बेच रहे थे। केवल हरियाणा के जींद में जो देसी घी बनाने वाली फ़ैक्टरी पकड़ी गई है वहां 2500 लीटर नक़ली घी का कच्चा माल बरामद हुआ। पुलिस ने इस मिलावटी नेटवर्क को चलाने में रितिक खंडेलवाल, मथुरा, संजय बंसल, शाहदरा, दिल्ली, रोहित अग्रवाल, मोदीनगर, गाज़ियाबाद, कृष्ण गोयल, जींद, नरेश सिंघला व अश्वनी उर्फ आशु, जींद को आरोपी बनाया है। नक़ली ज़हरीला घी खाने का अर्थ कैंसर को दावत देना होता है। वैसे तो देसी घी में प्रायः आलू, शकरकंद जैसे स्टार्च की मिलावटी की जाती है। लेकिन कई बार इसमें कोल टार डाई या अन्य ख़तरनाक रसायन भी मिला दिये जाते हैं जिसके कारण फ़ूड पॉइज़निंग, एलर्जी जैसी परेशानियों से लेकर कैंसर जैसी ख़तरनाक बीमारी तक भी हो सकती है।
ख़बरों के अनुसार गत 12 नवंबर (मंगलवार) को केवल दिल्ली में एक ही दिन में 50 हज़ार शादियां हुईं। ज़रा सोचिये कि हर शादी में दूध घी पनीर खोया मिठाई आदि की कितनी खपत हुई होगी। इसी तरह पूरे देश के विवाह आयोजनों व अन्य समारोहों में आप जब जहाँ और जितना भी घी, दूध, दही मक्खन, खोया, पनीर आदि जो भी चाहें आप को मिल जायेगा। सवाल यह है कि जब सरकार व प्रशासन भी इस जालसाज़ी व मिलावटख़ोरी की ख़बरों व इसके नेटवर्क से वाक़िफ़ है और इसे रोकने के लिये पर्याप्त क़ानून भी बने हैं उसके बावजूद मिलावटख़ोरी का यह सिलसिला दशकों से क्यों चला आ रहा है? कुछ लोगों की अधिक धन कमाने की ‘शॉर्टकट’ प्रवृति ने आख़िर पूरे देश को धीमा ज़हर खाने के लिये क्यों मजबूर कर दिया है। क्यों ज़हर के इन व्यवसायियों के हौसले दिन प्रतिदिन बढ़ते ही जा रहे हैं। यह जानने के लिये पड़ोसी चीन की एक घटना का उल्लेख करना ज़रूरी है। कुछ वर्ष पूर्व चीन में अपराधी मानसिकता के ऐसे ही दो लोगों द्वारा नक़ली दूध बनाने का धंधा शुरू किया गया। कुछ दिनों में ही यह नक़ली दूध जांच के दायरे में आ गया। जब यह नेटवर्क ध्वस्त हुआ तो वहां की सरकार ने इन दोनों ही अपराधियों को सज़ा-ए-मौत दे दी। तब से आजतक वहां नक़ली दूध के किसी दूसरे नेटवर्क ने अपना सिर बुलंद नहीं किया।
यदि आप देश के समाचारपत्रों पर नज़र डालें तो शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जिसदिन इस तरह का नक़ली, मिलावटी व ज़हरीला खाद्य सामग्री का नेटवर्क पकड़ा न जाता हो। परन्तु आपको यह ख़बर बहुत कम बल्कि ना के बराबर पढ़ने को मिलेगी कि अमुक नक़ली, मिलावटी खाद्य नेटवर्क से जुड़े लोगों को सख़्त सज़ा हुई हो। इसका कारण है कि जो प्रशासन मिलावटख़ोरी के नेटवर्क को पकड़े जाने की वाहवाही जिस तरीक़े से लूटता है वही उनसे जुड़े उन सुबूतों को अदालत तक उस मुस्तैदी के साथ नहीं पहुंचा पाता जैसा कि छापेमारी के समय मीडिया में नज़र आता है। अब चूँकि आदालतें साक्ष्य, गवाही व दस्तावेज़ों के आधार पर ही अपने फ़ैसले सुनाती हैं और अदालत में साक्ष्य, गवाही व दस्तावेज़ों को उपलब्ध कराना कार्यपालिका का विषय है, इसलिये साक्ष्य, गवाही व दस्तावेज़ों के अभाव में सभी गिरफ़्तार आरोपियों को सज़ा नहीं मिल पाती। इसीलिये यह आम धारणा बन चुकी है कि इसतरह के नेटवर्क से जुड़े लोग भ्रष्टाचार व रिश्वत के दम पर स्वयं को बचा ले जाते हैं और ज़ाहिर है कि बरी होने के बाद यही लोग बुलंद हौसले के साथ आम लोगों को ज़हर बेचने का यही काम फिर शुरू कर देते हैं।